लाउडस्पीकर की आवाज़ में
वह सिसकी की आवाज़
अपनी दिशा ही खोती हुई
उस किसान के
परले सिरेवाले झोपड़े से
उठती है , जहाँ का
बापू मर गया है
फँसरी लगाकर ।
रोने की वह आवाज़
इतनी अधिक मासूम,
कमजोर, दबी सी है
ठीक खाली पेट के
गुड़गुड़़ की तरह जो
पेट की गहरी घाटी से उठ
ऊपर की ओर
आती हुई गुम हो जाती है
या
अनसुनी कर दी जाती है
अभाव में ।
वह रोने की आवाज़ क्यों
इतनी दबी, कमजोर, मासूम सी है
कि दबंग, ईंट- गारे से
बने बड़े से मकान के
लाउडस्पीकर के तीखे शोर के नीचे
दम तोड़ रही है
तोड़ती ही रही है
सदा से???